लगभग 11,000 साल पहले, मध्यपूर्व के ‘फर्टाइल क्रिसेंट’ इलाके में किसानों को गेहूँ उगाते हुए एक अनोखी चुनौती से जूझना पड़ता था। पकने के बाद इस जंगली प्रजाति के खपली गेहूँ के दाने कटाई से पहले जमीन पर गिरकर बिखर जाते थे। अगले कुछ हज़ारों वर्षों तक किसानों ने सावधानीपूर्वक चुनकर कुछ पौधों की नस्ल को आगे बढ़ाया जिसके परिणामस्वरूप आज के उपजाए जाने वाले गेहूँ तक हम पहुँच पाये
ఐఐటీ బాంబే, ఐఐటీ మద్రాస్ మరియు ఐఐఐటి హైదరాబాద్ పరిశోధకులు కలిసి ఆంగ్లం నుండి అనేక భారతీయ భాషలకు స్పీచ్-టు-స్పీచ్ యాంత్రిక అనువాదం (SSMT) వ్యవస్థను రూపొందించారు.
ముంబై/