
आजकल घरों में पानी स्वच्छ करने के लिए माइक्रोफ़ाइबर-आधारित (सूक्ष्मतंतु-आधारित) फ़िल्टर का उपयोग बढ़ गया है। ये सूक्ष्म तंतु पानी में उपस्थित कीटाणुओं और प्रदूषण को हटाने में प्रभावी होते हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये लंबे समय तक चलते हैं और इनकी छानने की क्षमता दीर्घकाल बनी रहती है। इन माइक्रोफ़ाइबर्स को अधिक उपयोगी बनाने हेतु इन पर नैनोपार्टिकल (अति-सूक्ष्म कण) का एक लेपन (nanoparticle coating) चढ़ाया जाता है। नैनोपार्टिकल भारी धातुओं और कृत्रिम रंग जैसे विषैले पदार्थों को शोषित कर लेते हैं। उचित नैनोपार्टिकल का लेपन चढ़ा दिया जाए, तो इनका उपयोग घाव पर लगाई जाने वाली पट्टी के लिए भी किया जा सकता है।
पारंपरिक पद्धति में माइक्रोफ़ाइबर पर नैनोपार्टिकल का लेपन चढ़ाने के लिए पहले से बने तंतुओं को नैनोपार्टिकल के घोल में डुबोया जाता है। इस पद्धति में भारी-भरकम यंत्रों की आवश्यकता होती है। यह विधि कठिन होने के साथ ही इससे बनने वाले फ़िल्टर अधिक प्रभावी नहीं होते। इस पद्धति में नैनोपार्टिकल के प्रवाह को नियंत्रित नहीं किया जा सकता, जिसके कारण वे तंतुओं पर विभिन्न स्थानों पर गुच्छे बना लेते है एवं तंतुओं का अन्य भाग नैनोपार्टिकल विहीन रह जाता है। तंतुओं पर ऐसे असमान लेपन के कारण पानी में उपस्थित तलछट एवं कण फ़िल्टर से सहज छाने नहीं जाते, जिससे फ़िल्टर की कार्यक्षमता घटती है।
इस समस्या का समाधान करने हेतु, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) के रसायन अभियांत्रिकी विभाग के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक विकसित की है। यह शोध प्रा. वेंकट गुंडबाला एवं प्रा. राजदीप बंद्योपाध्याय के नेतृत्व में किया गया। इस शोधदल ने एक माइक्रोफ्लुइडिक (सूक्ष्म तरल प्रवाह; microfluidic) तकनीक विकसित की है जिसकी सहायता से अब उच्च-कार्यक्षमता के नैनोपार्टिकल-लेपित माइक्रोफ़ाइबर केवल एकल-चरण प्रक्रिया (सिंगल-स्टेप प्रोसेस) में बनाए जा सकते हैं। अपने इस नवीनतम शोध में, उन्होंने ने दिखाया कि यह एकल-चरण पद्धति माइक्रोफ़ाइबर पर नैनोपार्टिकल का एक समान लेपन चढ़ाती है। इस कार्य के लिए उन्होंने स्वयं निर्मित किये हुए मैग्नीशियम ऑक्साइड (MgO) नैनोपार्टिकल का प्रयोग किया। तदुपरांत, शोधकर्ताओं ने इन मैग्नीशियम ऑक्साइड से लेपित माइक्रोफ़ाइबर की पानी से सीसा (लेड), कैडमियम और आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं को छानने की क्षमता का परिक्षण किया।
इस तकनीक में दो काँच की नलियों से बनी रचना का प्रयोग किया गया है: एक 0.7 मिलीमीटर व्यास की पतली आंतरिक नलिका (कैपिलरी), जिसमें डायमिथाइल एसिटिमाइड (डीएमएसी; DMAc) द्रावक में घुले हुए पॉलीविनाइलडीन फ्लोराइड (पीवीडीएफ; PVDF) नामक पॉलिमर को एक सिरिंज पंप का उपयोग करके डाला जाता है। साथ ही, 1 वर्ग मिलीमीटर काट वाली बाह्य नलिका में एक अन्य सिरिंज पंपके माध्यम से वांछित नैनोपार्टिकल का घोल डाला जाता है। शोधकर्ताओं ने इन नलिकाओं के अंदर पॉलिमर एवं नैनोपार्टिकल घोल की सांद्रता और प्रवाह को नियंत्रित किया, जिससे तंतुओं के निर्माण के समय तंतुओं पर नैनोपार्टिकल का एक समान लेपन चढ़ना सुनिश्चित हुआ। काँच की ये नलियाँ एक माइक्रोफ्लुइडिक उपकरण की भांति कार्य करती हैं एवं तरल पदार्थों के प्रवाह पर सटीक नियंत्रण रखती हैं। जैसे ही पॉलिमर एक पतली धार (जेट) के रूप में आंतरिक नलिका से बाहर निकलता है, वह बाह्य नलिका में प्रवाहित हो रहे नैनोपार्टिकल वाले पानी के संपर्क में आता है। डायमिथाइल एसिटिमाइड द्रावक पानी में घुल जाता है, जिससे पॉलिमर की तरल धार एक ठोस सूक्ष्म तंतु (माइक्रोफ़ाइबर) में परवर्तित होती है। इस प्रकार से एक ही चरण के साथ माइक्रोफ़ाइबर का निर्माण और उन पर वांछित नैनोपार्टिकल का लेपन प्राप्त होता है।

“मैग्नीशियम ऑक्साइड के नैनोपार्टिकल तंतुओं के पृषभाग पर एक उपयुक्त प्रक्रिया के माध्यम से चिपकते हैं, क्योंकि धनात्मक आवेश वाले मैग्नीशियम ऑक्साइड नैनोपार्टिकल का ऋणात्मक आवेश वाले पॉलीविनाइलडीन फ्लोराइड पॉलिमर के प्रति शक्तिशाली आकर्षण होता है। साथ ही, नैनोपार्टिकल धारित पानी पूरी प्रक्रिया के समय पॉलिमर की धार के चारों ओर प्रवाहित रहता है, जिससे धार निरंतर और एक समान रूप से नैनोपार्टिकल से घिरी हुई रहती है। पॉलिमर के तंतुओं पर नैनोपार्टिकल का एकसमान लेपन प्राप्त होने का यह मुख्य कारण है,” प्रा. गुंडबाला बताते हैं।
शोधकर्ताओं ने पानी के नमूनों से भारी धातुओं को हटाने के लिए इन मैग्नीशियम ऑक्साइड-लेपित पॉलीविनाइलडीन फ्लोराइड तंतुओं (MgO-coated PVDF fibres) का परीक्षण किया। इस पानी में सीसा, कैडमियम और आर्सेनिक की निर्धारित मात्रा उपस्थित थी। जब पानी फ़िल्टर से प्रवाहित होता है, तो नैनोपार्टिकल स्थिरविद्युत् आकर्षण (इलेक्ट्रोस्टेटिक अट्रैक्शन) अथवा आयन एक्सचेंज प्रक्रिया के माध्यम से इन धातुओं को पकड़ लेते हैं, एवं फ़िल्टर से स्वच्छ पानी बाहर निकल जाता है। इन परिणामों से यह सिद्ध होता है कि इस तकनीक का उपयोग घरों के लिए और भूजल की स्वच्छता हेतु बड़े स्तर पर किया जा सकता है।
प्रा. बंद्योपाध्याय बताते हैं,
“इन नैनोमटेरियल-लेपित तंतुओं को फ़िल्टर के मुख्य भाग (कार्ट्रिज तथा कॉलम) में भरा जा सकता है। इनका उपयोग घरों में सिंक के नीचे, पूरे घर के लिए फ़िल्ट्रेशन उपकरण , एवं सुवाह्य जल शुद्धिकरण उपकरण और मॉड्यूलर फ़िल्टरों में किया जा सकता है।”
माइक्रोफ़ाइबर का उपयोग केवल पानी को स्वच्छ करने तक ही सीमित नहीं है। क्वांटम डॉट (छोटे अर्धचालक कण)-लेपित तंतुओं जैसे विभिन्न प्रकार के तंतुओं का उपयोग प्रदूषण के संसूचन के लिए संवेदक के रूप में किया जा सकता है। टाइटेनियम ऑक्साइड, तांबा या चाँदी के नैनोपार्टिकल उत्कृष्ट जीवाणुरोधी गुणों से युक्त होते हैं और इनका उपयोग घाव पर लगाई जाने वाली पट्टी एवं खाद्य सामग्री के पैकेजिंग में किया जा सकता है। औषधियों से लेपित तंतुओं का उपयोग शरीर के अंदर विशिष्ट भागों तक औषधि पहुँचाने के लिए किया जा सकता है, जिससे ऊतकों के विकास में प्रोत्साहन मिलता है। नैनोपार्टिकल का उपयोग माइक्रोप्लास्टिक और अन्य जैविक प्रदूषकों को हटाने के लिए भी किया जा सकता है।
प्रा. गुंडबाला कहते हैं,
“जब तंतुओ पर चुंबकीय आयरन ऑक्साइड नैनोपार्टिकल या ग्राफीन ऑक्साइड रॉड जैसे नैनोमटेरियल का लेपन चढ़ाया जाता है, तो वे माइक्रोप्लास्टिक को पकड़ने में बहुत प्रभावी होते हैं। इसी प्रकार, इमाइन-फ़ंक्शनलाइज्ड सिलिका नैनोपार्टिकल एवं निकल ऑक्साइड अथवा जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल से लेपित तंतु जैविक प्रदूषकों को पकड़ने हेतु उत्तम विकल्प होते हैं।”