आईआईटी मुंबई द्वारा विकसित नया स्पाडानेट (SpADANet) नामक डीप लर्निंग फ्रेमवर्क सीमित लेबलों का उपयोग करते हुए कई, चक्रवातों में हुए हानि के वर्गीकरण की सटीकता को बढ़ाता है।

चक्रवातों से हुई हानि का आकलन करने हेतु स्थानीय जागृति रखने वाला एक अभिनव एआई मॉडल

Mumbai
Hurricane damage
हरिकेन माइकल में भवनों के हानि का वर्गीकरण : (बायें से) नष्ट, गंभीर हानि, अल्प हानि, शून्य हानि (तलरेजा एवं दुर्भा, 2025)

शक्ति, मोन्था, सेन्यार, दितवाह... हिंद महासागर ने केवल नवम्बर-दिसंबर 2025 के दो महीनों में ही चार शक्तिशाली चक्रवातों को जन्म दिया है। इन चक्रवातों से सैकड़ों लोगों की मृत्यु हुई एवं भारत, श्रीलंका तथा पूर्वी एशिया के तट पर विनाश हो गया। चक्रवात और हरिकेन सबसे विनाशकारी मौसमी घटनाओं में से हैं, जो घंटों के भीतर पूरे समुदायों और शहरों को नष्ट कर देते हैं। विश्व भर में अब ऐसी आपदाओं के समय भवनों एवं अन्य आधारभूत संरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) को हुए नुकसान का निर्धारण (डैमेज असेसमेंट) करने के लिए सहायता दल हवाई छवियों पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं। परंतु समय पर सहायता मिलना इस बात पर निर्भर होता है कि इन छवियों के डेटासेट में उपस्थित डेटा से हम कितना अच्छा अर्थबोध कर पाते हैं। 

ड्रोन या उपग्रहों द्वारा ली गई छवियाँ प्रायः विभिन्न वस्तुओंसे भरी हुई होती हैं और इनमें क्षेत्र दर क्षेत्र विशेषताओं में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ दिखाई देती हैं। मनुष्यों द्वारा इन छवियों का आकलन करने में समय लगता है, किन्तु अब हानि का शीघ्र निर्धारण करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता अर्थात एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) मॉडलों का उपयोग किया जा रहा है। वास्तविक हर चक्रवात भिन्न दिखता है। प्रकाश की स्थितियाँ, भू-दृश्य, कैमरे की सेटिंग्स, हानि के स्वरूप, एवं भवन निर्माण सामग्री भी भिन्न होती है। उदाहरणस्वरूप, एक ऐसा एआई मॉडल जिसे आंध्र प्रदेश में चक्रवात मोन्था के प्रभाव के बाद गिरे हुए भवनों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया गया था, वह श्रीलंका में चक्रवात दितवाह की विनाशलीला के बाद ली गई हवाई छवियों का विश्वसनीय रूप से आकलन करने में कभी कभी सक्षम नहीं होता है। एक डेटासेट पर प्रशिक्षित मॉडल का अन्य समान डेटासेट पर प्रभावी प्रदर्शन न होने की इस समस्या को ‘डोमेन गैप’ के रूप में जाना जाता है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई के शोधकर्ताओं ने ऐसे डोमेन गैप को संबोधित करने हेतु एक नवीन समाधान विकसित किया है : ‘स्पेशिअली अवेयर डोमेन एडाप्टेशन नेटवर्क’, अर्थात स्थानीय समझ रखनेवाला डोमेन-अनुकूलन नेटवर्क (SpADANet)। जैसा कि नाम से पता चलता है, इस मॉडल को स्थान की समझ होती है, जिसका अर्थ है कि यह हानि के रंग या आकार साथ स्थान और संदर्भ संबंधित स्वरूपों (डैमेज पैटर्न्स) को पहचान सकता है। ‘डोमेन एडाप्टेशन’ का अर्थ है कि मॉडल पूर्व में प्राप्त जानकारी का पुन:उपयोग कर सकता है एवं सीमित चिह्नित (लेबल्ड) उदाहरणों का उपयोग करके शीघ्रता से समायोजित हो सकता है। ‘नेटवर्क’ मॉडल की रचना को निर्देशित करता है, जो एक ‘आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क’ है। आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क मानव मस्तिष्क के जैविक तंत्रिका तंत्र की संरचना और कार्यप्रणाली से प्रेरित संगणन मॉडल होते हैं।

सारांशतः, स्पाडानेट एक ऐसा एआई मॉडल है जिसे विभिन्न चक्रवातों के लिए ‘अनुकूलित’ होने के लिए योजित किया गया है, तथा जो प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त (ग्राउंड ज़ीरो) सीमित चिन्हित नमूनों के साथ भी कार्य कर सके। इस अध्ययन के निष्कर्ष हाल ही में आईईईई जियोसाइंस एंड रिमोट सेंसिंग लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि स्पाडानेट के उपयोग से विभिन्न प्रकार के चक्रवातों के लिए अभी तक उपलब्ध पद्धतियों की तुलना में, हानि के वर्गीकरण की सटीकता में 5% से अधिक का सुधार होता है।

“वर्तमान में उपलब्ध मॉडल, डोमेन गैप की समस्या पर सांख्यिकीय (स्टैटिस्टिकल) रूप से विचार करते हैं, परंतु स्थानीय, या ‘स्पेशियल’ संदर्भ पर ध्यान नहीं देते हैं। स्थानीय संदर्भ का अर्थ है छवि में उपस्थित वस्तुओं, जैसे भवनों की व्यवस्था एवं छवि के भीतरी आपसी संबंध। यही स्पाडानेट के केंद्र में है,” इस अध्ययन के प्रथम लेखक, आईआईटी मुंबई के पीएचडी अध्येता एवं प्रधानमंत्री रिसर्च फेलो, प्रत्युष तलरेजा बताते हैं। 

इसके अतिरिक्त, शोधकर्ताओं ने सीमित संगणन शक्ति के साथ चलने के लिए भी मॉडल को अनुकूलित किया है, और इसका उपयोग टैबलेट तथा मोबाइल फोन पर भी किया जा सकता है। इस विशेषता के कारण आईआईटी मुंबई का मॉडल प्रत्यक्ष स्थितियों में एक उपयोगी साधन है एवं विशेषतः सीमित संसाधनों के क्षेत्र में आपदा मोचन की चुनौतियों का समाधान करने का प्रयास करता है। यद्यपि शोधकर्ताओं ने इस मॉडल का परीक्षण अमेरिका में आए हरिकेनों पर किया, वे आश्वस्त हैं कि उचित स्थानिक छवियों के साथ इस मॉडल को हानि के आकलन हेतु वैश्विक स्तर पर लागू किया जा सकता है। तलरेजा बताते हैं कि स्पाडानेट का उपयोग विभिन्न वातावरणों में प्रभावी प्रकार से किया जा सकता है, परंतु स्थानीय रूप से चिह्नित डेटा की केवल थोडीसी मात्रा भी उस स्थान के लिए स्पाडानेट के अनुकूलन और विश्वसनीयता को बढ़ाती है।

स्पाडानेट की उपयोगिता के बारे में अधिक बताते हुए तलरेजा कहते हैं, “भारत में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) जैसी एजेंसियों को तीन मुख्य बाधाओं का सामना करना पड़ता है : चिह्नित डेटा की कमी, सीमित संगणना संसाधन एवं छवि की विशेषताओं में प्रादेशिक स्तर पर डोमेन गैप। स्पाडानेट इन बाधाओं को दूर करने में सहायता कर सकता है क्योंकि यह कम लेबलों से सीख पाता है, नए प्रदेशों के लिए अनुकूलित हो सकता है तथा प्रशिक्षित होने पर यह सामान्य संगणन हार्डवेयर पर भी चल सकता है। शोधकर्ताओं और सरकारी एजेंसियों के मध्य निरंतर सहयोग से, ऐसे एआई मॉडल लगभग वास्तविक-समय (नियर-रियल-टाइम) पर कार्य करने वाली आपदा मोचन प्रणालियों का भाग बन सकते हैं।”

रेज़नेट (ResNet) मॉडल का उपयोग आधार के रूप में करके स्पाडानेट को विकसित किया गया है। रेज़नेट एक प्रकार का ‘डीप न्यूरल नेटवर्क’ है, जिसकी छवियों में पैटर्न पहचानने की क्षमताएँ उत्कृष्ट सिद्ध है। इस अध्ययन में हरिकेन हार्वे (2017), मैथ्यू (2016), एवं माइकल (2018) पर मॉडल का परीक्षण किया गया। यदि नई आपदा की केवल 10% छवियों में ही मानव-सत्यापित लेबल (ह्यूमन-वेरिफाइड लेबल्स) थे, तब भी स्पाडानेट की वर्गीकरण-सटीकता एवं विश्वसनीयता (क्लासिफिकेशन एक्यूरेसी एंड रिलायबिलिटी) दोनों अन्य प्रस्थापित पद्धतियों—अर्थात डीएएनएन (DANN), एमडीडी (MDD), एमसीसी (MCC), और रेज़नेट + कोरल (ResNet + CORAL)—से अधिक अच्छी थी।

उपग्रह से प्राप्त छवियों को चिह्नित (लेबल) करने में बहुत समय एवं लागत की आवश्यकता होती है। चिह्नित करने के लिए प्रत्येक छवि को किसी मानव की दृष्टी की आवश्यकता होती है जो निर्देशित कर सके कि कोई भवन नष्ट हो गया है अथवा थोड़ा क्षतिग्रस्त हुआ है। आपदा के समय शीघ्र कार्यवाही के लिए कम से कम चिह्नित नमूनों का उपयोग करके विश्वसनीय आकलन महत्वपूर्ण है। इसलिए, ये निष्कर्ष प्रत्यक्ष आपदा-सहायता की स्थितियों में इस बात पर बल देते हैं कि मॉडल प्रदेश के अनुसार प्रभावी रूप से शिक्षित (डोमेन-अवेयर लर्निंग) हो। स्पाडानेट के परिणाम उत्साहजनक दिखते हैं, एवं जिस प्रकार से स्पाडानेट डोमेन एडाप्टेशन अर्थात, प्रादेशिक अनुकूलन करता है, वह अभिनव पद्धति है।

“स्पाडानेट प्रथम स्व-पर्यवेक्षित शिक्षण (सेल्फ-सुपरवाइज्ड लर्निंग) नामक एक प्रक्रिया का उपयोग करके एक क्षेत्र (चक्रवात अध्ययन क्षेत्र) से चिन्हरहित (अनलेबल्ड) छवियों का अध्ययन करके स्वयं को सिखाता है। यह मॉडल को दृश्य के सामान्य स्वरूपों को समझने में सहायता करता है, जैसे कि हवाई छवियों में क्षतिरहित एवं क्षतिग्रस्त भवन या मलबा कैसे दिखते हैं। जब तक मॉडल लेबल्ड डेटा को देखता है, तब तक उसे इस बात का प्रबल ज्ञान हो जाता है कि डेटा में क्या खोजना है,” इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले प्राध्यापक सूर्या दुर्भा स्पष्ट करते हैं।

स्व-पर्यवेक्षित शिक्षण के पश्चात, मॉडल एक नवीन पद्धति का उपयोग करता है, ‘बाइलैटरल लोकल मोरॅन्स-आई’ (बीएलएमआई) मॉड्यूल। मोरॅन्स-आई स्थान-संबंधित समूहन, अर्थात स्पेशियल क्लस्टरिंग का एक व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला सांख्यिकीय माप है। बीएलएमआई पर आधारित होने के कारण मॉडल को स्थानीय अथवा क्षेत्रीय संबंधों को पहचानने की क्षमता प्रदान होती है। इसका अर्थ है कि मॉडल केवल यह नहीं देखता कि जिनकी हानि हुई है वे भवन कैसे दिखते है; मॉडल यह भी समझता है कि हानि कहाँ और किस प्रकार से उपस्थित हो सकती है। दूसरे शब्दों में, मॉडल छवि में केवल एकल पिक्सल (छवि का सबसे छोटा भाग) या कोई पृथक भाग को देखने के स्थान पर यह भी देखता है कि निकट के पिक्सल और भाग एक-दूसरे से कैसे संबंधित हैं। इससे मॉडल केवल रंग या आकार के अतिरिक्त, स्थान और संदर्भ के आधार पर हानि के पैटर्न को पहचानने में सक्षम होता है।

स्पाडानेट यह सुनिश्चित करता है कि विभिन्न चक्रवातों की छवियों में हानि की प्रत्येक श्रेणी, जैसे ‘शून्य हानि’, ‘गौण/अल्प हानि’, ‘गंभीर/बड़ी हानि’, ‘नष्ट’, ठीक से मेल खाती है। प्रकाश स्थिति, भवन निर्माण सामग्री एवं रचना भिन्न होने पर भी स्पाडानेट यह पहचानना सीखता है कि एक चक्रवात में एक “नष्ट” हुआ भवन एवं दूसरे चक्रवात में “नष्ट” हुए भवन समान ही दिखना चाहिए। इसका अर्थ है कि एक चक्रवात में नष्ट हुई छत को दूसरे चक्रवात में नष्ट हुई छत के समान ही माना जाता है ताकि भिन्न भौगोलिक प्रदेशों के कारण होने वाले संभ्रम से बचा जा सके। बीएलएमआई मॉड्यूल स्थान-संबंधित पैटर्न्स को समझने की मॉडल की क्षमता को और दृढ़ करता है। केवल कुछ ही चिह्नित उदाहरण उपलब्ध होने पर भी, ‘सेल्फ-सुपरवाइज्ड लर्निंग’ पद्धति स्पाडानेट को किसी नए चक्रवात के लिए सहज अनुकूलित होने में सहायता करती है। 

कुछ कारकों के कारण मॉडल के बड़े स्तर पर तत्काल कार्यान्वयन में अल्पकालिक बाधा उत्पन्न हो सकती है, जैसे प्रमाणित डेटासेट की उपलब्धता और एजेंसियों से डेटा प्राप्त होने में सीमाओं का होना। शोधकर्ता इन बाधाओं से परिचित हैं और उन्हें दूर करने के लिए प्रयत्नशील हैं। भविष्य में शोधदल इस मॉडल का विस्तार करने की योजना बना रहा है। इस शोधकार्य में मल्टीमॉडल अर्थात बहुआयामी डेटा को एकीकृत करना उनका अगला चरण है, उदाहरणस्वरूप, छवियों को लायडार (LiDAR) डेटा के साथ संयोजित करना। आज जब वैश्विक ऊष्मा बढ़ रही है और चक्रवातों की संख्या एवं तीव्रता दोनों ही बढ़ती जा रही हैं, स्पाडानेट जैसा एक तेज, लागतप्रभावी हानि-निर्धारण तंत्र समय पर और विश्वसनीय हानि-निर्धारण हेतु महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

टिपण्णी:
इसी वर्ष की शुरुआत में, जापान के एक अलग शोधदल ने इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन में एक अन्य मॉडल प्रस्तुत किया था जिसका नाम बहुत समान (SPADANet) था। परंतु, यह आईआईटी मुंबई के स्पाडानेट (SpADANet) से भिन्न है, एवं आईआईटी के शोधकर्ताओं ने पुष्टि की है कि नाम में यह समानता केवल संयोगवश है।

तलरेजा समझाते हैं, “हमारा स्पाडानेट प्रदेश के अनुसार ‘डोमेन-एडाप्टिव नेटवर्क’ के रूप में निर्मित है जो एक नविन बीएलएमआई मॉड्यूल और ‘क्लास-वाइज़ कोरल (CORAL) लॉस फंक्शन’ का लाभ उठाता है। परंतु जापान के दल के कार्य का लक्ष्य ‘डोमेन एडाप्टेशन’ नहीं है तथा इसका उल्लेख भी नहीं किया गया है। उनका कार्य हानि-निर्धारण एवं छवि में परिवर्तन पहचानने से संबंधित है। हम विशेषतः लक्ष्यित क्षेत्र से विभिन्न मात्रा में नमूनों को ध्यान में रखते हुए ‘सेल्फ-सुपरवाइज्ड डोमेन एडाप्टेशन’ करते हैं ताकि हम उन विशेषताओं को सीख सकें जो प्रदेशानुसार परिवर्तित नहीं होतीं (डोमेन-इनवेरिएंट फीचर्स)। इस प्रकार, हमारा SpADANet जापान के SPADANet मॉडल से मूलतः भिन्न है।”

भारतीय मॉडल को चक्रवातों से हुई हानि के निर्धारण के लिए स्वतंत्र रूप से विकसित किया गया है जिसमें रेज़नेट (ResNet) का आधार के रूप में उपयोग किया गया है एवं डोमेन एडाप्टेशन प्राप्त करने के लिए इसमें ‘स्पेशियल अवेयरनेस’ एवं सेल्फ-सुपरवाइज्ड लर्निंग को जोड़ा गया है।

Hindi

Search Research Matters