Study details how floating plastic debris can affect physical processes in the oceans
Ecology
वैज्ञानिकों ने एक जीवाणु उपभेद की पहचान की है जो बजाय चीनी के, सुगंधित प्रदूषकों को खाना पसंद करता है !
अध्ययन से पता चला है कि कैसे भूमि के आकार, सिंचाई और किरायेदारी के आधार पर किसान कपास के खेतों में कीटनाशकों पर खर्च करते हैं
कर्नाटक में खोजी गयी छिपकली की एक नयी प्रजाति को हेमिडेक्टीेलस विजयराघवानी नाम दिया गया है, जो भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, प्राध्यापक विजयराघवन के नाम से प्रेरित है।
इस खोज के श्रेयस्कर राष्ट्रीय जीवविज्ञान केंद्र (एन सी बी एस), बेंगलुरु स्तिथ प्राध्यापक विजयराघवन की प्रयोगशाला से जुड़े शोधकर्ता श्री जीशान मिर्ज़ा हैं. इस अध्ययन के परिणाम, शोधपत्रिका फैलोमेडुसा में प्रकाशित हुए हैं, और इसे सिन्गिनवा कन्सेर्वटिव फाउंडेशन एवं न्यूबै ट्रस्ट लिमिटेड की ओर से आंशिक वित्तीय सहायता प्राप्त हुई है।
हाल ही में हुए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने केरल के पश्चिमी घाट में मेंढक की एक नयी प्रजाति खोजी है। माइक्रोहाइला डरेली नामक यह प्रजाति माइक्रोहाइला जीनस से संबंधित है जिसे आमतौर पर संकरे-मुँह वाला मेंढक कहा जाता है क्योंकि इसका शरीर त्रिकोणीय-आकृति और नुकीले थूथन वाला है। इस प्रजाति के मेंढक जापान, चीन, भारत, श्रीलंका और दक्षिणपूर्व एशिया में फैले हुए हैं।
के टी हेच रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी स्वीडन,बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, आरहूस यूनिवर्सिटी डेनमार्क आई सी पी ओ ‘बॉयोलॉजिस्ट्स फॉर नेचर कंज़र्वेशन’ रूस और यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन, यू एस ए ने शहरीकरण का पक्षियों की विविधता पर प्रभाव का अध्ययन किया है।
क्या आप जानते हैं कि पोकेमॉन फ्रैंचाइज़ी का प्रसिद्ध चरित्र, पिकाचु नामक एक ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाले छोटे जानवर से प्रेरित था?
भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधकर्ताओं ने पूर्वी हिमालय की 3,630 मीटर ऊँचाई की पहाड़ियों में इन शाही बाघों के होने के साक्ष्य का पहला फोटो प्रस्तुत किया था।
लगभग एक मीटर लंबा और १८ किलोग्राम तक वजन वाला, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पृथ्वी पर सबसे भारी उड़ने वाले पक्षियों में से एक है। पिछले ५० वर्षों में उनकी संख्या में लगभग ९०% की गिरावट आई है, और इन करिश्माई पक्षियों का भविष्य विलुप्ति की ओर बढ़ रहा है। वे अब अपने अस्तित्व के लिए समय के खिलाफ एक कड़ी दौड़ में हैं और अगर ये हालात तेजी से नहीं बदलते हैं, तो वे स्वतंत्र भारत में विलुप्त होने वाली पहली प्रजाति हो सकते हैं।
शाकाहारी कीटों में पौधों के समुदायों की संरचना और कार्य को प्रभावित करने और आकार देने की क्षमता होती है। कीटों की कुछ प्रजातियाँ अपने जीवन चक्र का कुछ हिस्सा या पूरा जीवन कुछ विशिष्ट पौधों पर ही गुज़ारती हैं। चूँकि उन्होंने लाखों वर्षों से पौधे के साथ सह-सम्बंध विकसित कर लिया होता है इसलिए जिन पौधों का वे सेवन करते हैं उनकी पत्तियों की लंबाई और आकार के विकास पर उनका असर पाया जाता है। इन दोनों के बीच के सम्बंधों को समझने से इस तरह के सवाल कि क्यों पत्तियों की लंबाई और आकार में इतनी विविधता होती है, का जवाब मिल सकता है। एम.ई.एस.