बड़े एवं अखंड वन पारिस्थितिक रूप से स्वस्थ होते हैं एवं जैव विविधता को समृद्ध करते हैं। ये प्राकृतिक एवं मानव-निर्मित बाधाओं का प्रतिकार कर सकते हैं तथा स्वयं को पुनर्जीवित कर सकते हैं। अखंड रूप से आच्छादित ये वन दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं। इसके विपरीत, खंडित रूप से वितरित वन, पौधों तथा जानवरों के अस्तित्व एवं जानवरों के आवागमन को बाधित करते हैं; उदाहरण स्वरूप, मनुष्यों के साथ संघर्ष किए बिना जीवन, शिकार एवं प्रजनन आदि के लिए बाघों को बड़े एवं परस्पर जुड़े हुए वनों की आवश्यकता होती है। यद्यपि भारतीय वन सर्वेक्षण (फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया) तथा अन्

बहुघटकीय विरासत

हमारे जीन हमारी शारीरिक संरचना से लेकर, हमें मिलने वाले रोगों तक हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करते हैं। हमारे जीवन में केवल जीन का ही प्रभाव नहीं होता बल्कि जिस पर्यावरण हम रहते हैं, वो भी हमें प्रभावित करता है। खान-पान, व्यायाम और हमारे निवास स्थान के प्रदूषण का स्तर, सभी हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। अगर बहुत सारे जीन में खराबी आती है तो कैंसर और कोरोनरी धमनी (कोरोनरी आर्टरी) की बीमारी जैसे प्रमुख रोग उत्पन्न होते हैं। लेकिन जीवनशैली और पर्यावरणीय कारक भी इन विकारों और उनकी उग्रता को प्रभावित करने में एक मुख्य भूमिका निभाते हैं। वैज्ञानिक इस तरह की विरासत (वंशानुक्रम) को बहुघटकीय विरासत कहते हैं क्योंकि इसमें कई कारक सम्मिलित हैं। क्योंकि ये बीमारियाँ एक बड़े अनुपात में जनसंख्या पर असर डालती हैं इसलिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये बीमारियाँ कैसे विरासत में मिलती हैं और जीवनशैली में परिवर्तन ला कर  उन्हें कैसे कम किया जा सकता है।

वैज्ञानिक सहज ज्ञान के तरीकों का उपयोग करके जीन और पर्यावरण संबंधी भूमिकाओं का परीक्षण करते हैं। आनुवंशिक प्रभावों को देखने के लिए, वे एक ही जीन कोष (जीन पूल) के रोगी के परिवार का परीक्षण करते हैं। यदि कई नज़दीकी रिश्तेदार प्रभावित हैं तो बीमारी के आनुवांशिक होने की प्रबल संभावना मानी जाएगी । जैसे, यदि एक जैसे जुड़वाँ एक बीमारी से प्रभावित हैं, और केवल कुछ सगे भाई-बहन, और कुछ चचेरे भाई-बहन इस बीमारी से प्रभावित हैं तो यह एक मजबूत प्रमाण है कि यह रोग आनुवांशिक है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक से जुड़वों के जीन लगभग समान होते हैं, सगे भाई-बहनों के जीन का लगभग आधा हिस्सा और चचेरे भाई-बहनों के जीन का आठवाँ हिस्सा समान होता है। जैसे जैसे सहभाजी जीन का प्रतिशत घटता है, आनुवांशिक रूप से निर्धारित रोग होने की संभावना भी कम हो जाती है। जीन अनुक्रम और जैव सूचना-विज्ञान में आधुनिक विकास की बदौलत, वैज्ञानिक इन रोगों का अधिक विस्तार से अध्ययन करने में सक्षम हैं। डीएनए अनुक्रमण मूल स्तर पर परिवारों और बड़ी आबादी के अंतर्गत जीन का परीक्षण करने की एक प्रत्यक्ष विधि है। यह वैज्ञानिकों को उत्तरदायी जीन की सटीक पहचान करने में मदद करता है, जिससे वे बीमारी और विरासत  की बेहतर भविष्यवाणी कर पाते हैं। इन जानकारियों के चलते चिकित्सक और आनुवांशिक सलाहकार जीवनशैली में बदलाव की सलाह दे सकते हैं जिससे रोगियों और सामान्य आबादी का जीवन अधिक स्वस्थ बन सकता है।

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